Monday, June 11, 2007

हैहय वंश के आराध्य देव पुरुष राज राजेश्वर कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन जी की आरती।

॥ श्री ॥
-- गणेशाय: नम: --
"जय सहस्त्रबाहू देवा"


जय सहस्त्रबाहू देवा-जय सहस्त्रबाहू देवा

माता जाकी पध्यिनी- पिता कार्तवीर्य
स्मरण को भोग लगे - हैहयवन्शीय करें सेवा
जय सहस्त्रबाहू देवा.............................


पिता संग माता ने तपस्या में साथ निभाया
विष्णु जी से श्रेष्ठ वीर पुत्र का वरदान पाया
बडे होने पर पिता ने राजमुकुट पहनाने का विचार बनाया
आपने बिना योग्यता राजपद न अपनाया

जय सहस्त्रबाहू देवा ..........................

गर्ग से पायी प्रेरणा - दत्तात्रेय की सेवा
चार वरदानों का फल पाया - सहस्त्रवाहों का बल पाया
धर्मपूर्वक प्रजा पालन एवं रक्षा का सूत्र हाथ आया
रणभूमि में जग के श्रेष्ठ योद्धा से मरने का विश्वास आया
जय सहस्त्रबाहू देवा ..........................
अपना राज्य सात समंदर तक फैलाया
जन जन की रक्षा का वचन निभाया
रावण को अपनी भुजाओं में बंदी बनाया
सुन्दर काण्ड में वीर हनुमान से प्रशंसा पाया
जय सहस्त्रबाहू देवा ..........................
एक हज़ार यज्ञ प्रतिदिन सोने की वेदी में करवाया
धर्म ओर कर्म में जग में नाम कमाया
प्रात: नाम स्मरण कराने पर जन जन को
युगों से मन वांछित फल दिलवाया
स्वयं ने जग में राजराजेश्वर का पद पाया
जय सहस्त्रबाहू देवा ..........................
राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन की महिमा को देवों ने भी वेदों में गाया
महेश्वर में पूज्य स्थल बनवाया , शिवलिंग में तुमको बसाया
आग्निदेव ने "आखंड ज्योती" के रूप में साथ निभाया
नर्मदा ने सहस्त्रधारा के संग अपना विशाल रूप दिखलाया
जन- जन ने महेश्वर को तीर्थस्थल के रूप में अपनाया
जय सहस्त्रबाहू देवा ..........................